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इतिहास

संयुक्त मध्य भारत का उद्घाटन तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 28 अप्रैल 1 9 48 को ग्वालियर में किया गया। सिंधिया और होलकर को क्रमशः राजप्रमुख और उप-राजप्रमुख के रूप में शपथ दिलाई गई । संयुक्त मध्य भारत को 6 जिलों में विभाजित करने का निर्णय लिया गया और भिंड उनमें से एक था। नवंबर 1956 में नए मध्यप्रदेश के गठन पर राज्यों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप, भिंड जिला नए मध्य प्रदेश का एक हिस्सा बन गया।

पौराणिक भिंड : महाभारत युद्ध के दौरान यमुना और विन्ध्य के मध्य पुरे क्षेत्र में चेदियों का निबास था l राजा कासु चैद्य (महाभारत में वासु के नाम से प्रख्यात) का उल्लेख ऋग्वेद में दानस्तुति के एक श्लोक में किया गया है l पौराणिक साहित्य ने इन चेदियों को यदुओं के वंशज के रूप में प्रस्तुत किया है । पौराणिक परंपरा के अनुसार मनु के पौत्र पुरुर्वा जो चन्द्रवंश के संस्थापक हैं, ने कदाचित मालवा एवं पूर्वी राजपुताना और संभवत: भिंड जिले को भी घेरते हुए अपने साम्राज्य का बिस्तार गंगा के दोआब में किया । उनके प्रपौत्र अयाति ने पूरे मध्यदेश और आसपास के क्षेत्र को कम कर दिया । उनके बाद उनके पुत्र यादवों के जनक यदु चंबल, बेतवा और केन नदियों से सिंचित क्षेत्र के राजा बन गए । ह्यैयाओं द्वारा यदुओं को उखाड़ फेंका गया और ह्यैयाओं को विदर्भ के यदुओं द्वारा नष्ट नाबूद कर दिया गया l राजघराने के कृष्ण नाम का एक सदस्य चेदि – देश जिसमे यमुना के दक्षिण तथा केन एवं चम्बल के मध्य की भूमि सम्मिलित थी, का राजा बन गया l इस प्रकार भिंड जिला आर्यों के अधीन आ गया l चेदि देश का पौराणिक सूची में उल्लेख है l 6 वीं सदी ईसा पूर्व में यह सोलह महाजनपदों में से एक था। कुछ समय बाद यादव वंश का चेदि राजा को हस्तिनापुर के राजा कुरुके एक वंशज बासु द्वारा परास्त कर दिया गया । कुछ पीढ़ियों के बाद इस वंश का चेदि राजा शिशुपाल था, जिसने भगवान कृष्ण को पांडवों के राजसूय यज्ञ के दौरान गालियाँ दी थीं और जिसका वध श्रीकृष्ण द्वारा इंद्रप्रस्थ में किया गया था ।

नंदवंश : 4 वीं शताब्दी ईस्वी में सम्पूर्ण आर्यवर्त्य को नंदों के विशाल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया था। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार नन्द वंश के संस्थापक महापद्मनन्द ने सभी क्षत्रपों का विनाश किया और एकक्षत्र शासक बन गए l

मौर्य : अशोक के शिलालेखों के वितरण से पता चलता है कि तीसरी सदी ईसा पूर्व में वह एक विशाल साम्राज्य जिसमे विल्कुल दक्षिण के चार राज्यों को छोड़कर पूरा भारतबर्ष था, का स्वामी था l गूजर में विद्यमान अशोक का शिलालेख (आसन्न दातिया जिले में) इस क्षेत्र से मौर्यों के घनिष्ठ संबंधों को प्रमाणित करता है l अशोक ने अपना साम्राज्य अपने पिता बिन्दुसार और बाबा चन्द्रगुप्त मौर्य से प्राप्त किया था l

मौर्य

अशोक

शुंग : मौर्यवंश का अंतिम शासक ब्रहद्रध की हत्या उसके ही मंत्री पुष्यमित्र द्वारा 187 ई.पू. में कर दी गई और मौर्य शासन के मध्य भाग में शुंग वंश की स्थापना हुई l शुंग राजाओं की दूसरी राजधानी विदिशा थी।

आरंभिक नागा : प्रथम ईसवी बर्ष में ग्वालियर क्षेत्र आरंभिक नागाओं के शासन के अधीन था। पद्मावती (ग्वालियर जिले में), मथुरा और कांतीपुरी (मुरेना जिला) इन नागा शासकों की तीन शाखाओं के मुख्यालय थे। बाद में कुषाणों ने इन नागाओं को अपने अधीन कर लिया ।

कुषाण : कनिष्क कुषाण सम्राटों में से सबसे महान था l उसका साम्राज्य बिहार में पूर्व से खुरासन पश्चिम तक, उत्तर में खोटण से लेकर दक्षिण में कोकण तक से लेकर मध्यदेश, उत्तरपथ और प्राचीन भारत के अपरांतक क्षेत्रों तक फैला हुआ था l इस प्रकार भिंड जिला कुशाण साम्राज्य में शामिल था l वासुदेव के शासनकाल के बाद इस क्षेत्र में कुशाण सत्ता का पतन हो गया । उनका स्थान नागाओं द्वारा पुनः ले लिया गया जो तृतीय एवं चतुर्थ इसवी तक इस क्षेत्र में राजनीतिक रूप से प्रभावी रहे ।

नागा : आरंभिक नागाओं के सामान बाद के नागा शासक तीन आश्रमों – मथुरा, कान्तिपुरी एवं पद्मावती के थे और इन्होने पद्मावती, मथुरा एवं विदिशा के आसपास के क्षेत्रों पर शासन किया l कॉपर से निर्मित विभिन्न प्रकार के 270 तावें के लगभग 270 सिक्के जो नागाओं से सम्बंधित हैं, अकोड़ा जिला भिंड से एकत्रित किये गए l कुछ सिक्के गोहद में भी प्राप्त हुए हैं l

गुप्त : चौथी शताब्दी के मध्य में नागा साम्राज्य गुप्त संप्रभुता के अधीन हो गया।

हूण : भानुगुप्त ( 495 – 510 ई.) के शासनकाल के दौरान अथवा उसके सिंघासनारूढ होने से कुछ पूर्व हूण सेनापति तोरमाण के आक्रमण ने गुप्त साम्राज्य को तेजी से समाप्त कर दिया l हूण साम्राज्य में पंजाब से लेकर मध्य एशिया का क्षेत्र सम्मिलित था l यहाँ तक कि मगध, कौशाम्वी एवं काशी तक हूणों के अधीन थे l

वर्धन राजवंश : 7 वीं शताब्दी की शुरूआत में विज्ञापन हर्षवर्धन थानेश्वर के सिंहासन पर बैठा और कन्नौज का राजा बन गया । इस राजवंश के शासन काल में बौद्ध धर्म का बिकास हुआ ।

गुर्जर प्रतिहार : 8 वीं शताब्दी में 726 – 50 ई. के मध्य मालवा के साथ-साथ यह क्षेत्र गुर्जर प्रतिहारों की एक शाखा के राजवंश के शासनाधीन आ गया ।

कच्छपघात : वज्रदमन ने लगभग 977 ई. में धंग के लिए ग्वालियर किले पर विजय प्राप्त की । तत्पश्चात उसके राजवंश ने बाराहबीं शताब्दी के प्रारम्भिक बर्षों तक ग्वालियर क्षेत्र पर शासन किया ।

सल्तनत काल :यह क्षेत्र दिल्ली के सुल्तानों के अधीन आ गया । वर्ष 1195 – 96 में मोहम्मद गौरी ने सुलक्षणपाल पर हमला किया l ग्वालियर के प्रतिहार अधिपति ने गौरी की संप्रभुता स्वीकार कर ली जिसके कारण उसे इस क्षेत्र पर शासन करने की अनुमति दे दी गई ।

शूर राजवंश : बाद में यह क्षेत्र शूर राजवंश के प्रभाव में आया था।

मुगल : भिंड जिला आगरा सूबा में आगरा सरकार का बड़ा भाग था । जिले में मुख्य रूप से हथकंट का महल था जिसमें ईंटों का किला था । मुगल शासन 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक जारी रहा । गोहद नगर जो अब भिंड जिले का हिस्सा है, की बुनियाद एक जाट परिवार द्वारा डाली गई थी । 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जाट परिवार द्वारा इस शहर के आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया गया । लगभग 1736 ईस्वी में, बाजीराव प्रथम की अगुआई में मराठा सेना ने भदावर के राजा पर हमला कर दिया और युद्ध लड़कर उसके क्षेत्र को तबाह कर दिया । 1737 में पुनः मल्हार राव होल्कर ने भदावर के राजा के क्षेत्र पर हमला किया और उसके गढ़ पर कब्ज़ा कर लिया।

मुगल काल के बाद : नवंबर 1805 में सिंधिया एवं कार्नवालिस प्रथम के साथ संपन्न हुई एक और संधि के तहत अंग्रेज़ों ने गिर्द गोहद, परगना भिंड और इसकी गढ़ियों सहित ग्वालियर और गोहद के गढ़ महाराजा दौलत राव सिंधिया (1784-1827) को सौंप दिए गए l यहाँ से भिंड जिले का इतिहास ग्वालियर के इतिहास के साथ मिल जाता है । सन 1827 ई. में दौलत राव सिंधिया का निधन हो गया और इसके बाद उत्तराधिकार में नाबालिग दत्तक मुगत राव उर्फ़ जानकोजी गद्दी पर बैठे । इनके बाद जयाजी राव ने शासन किया l 1857 के विद्रोह (सैनिक विद्रोह) के बाद रानी लक्ष्मी बाई, राव साहब एवं तात्या टोपे की संयुक्त सेना ने सन 1858 ई. में ग्वालियर पर आक्रमण किया l तभी अंग्रेजों ने ग्वालियर के किले पर धावा बोल दिया और जून 18, 1858 को इसे अपने कब्ज़े में ले लिया । मार्च 1886 में यह सिंधिया को दे दिया गया । अपने पुत्र माधव राव सिंधिया को उत्तराधिकारी के रूप में छोड़ कर जीवाजी राव सिंधिया का सन 1886 ई. में निधन हो गया l राव सिंधिया को शासन करने के अधिकार 15 दिसंबर 1894 को प्राप्त हुए l उनके शासन की अवधि समेकन और स्थिर प्रगति के रूप में वर्णित है। ग्वालियर से भिंड तक ग्वालियर लाइट रेल का निर्माण 1897 में किया गया था और 1899 में शुरू किया गया । 5 जून 1925 को उनका निधन हो गया । इनके उत्तराधिकारी जीवाजी राव सिंधिया हुए । इनके समय में स्वतंत्रता आंदोलन मजबूत हो गया था । 28 अप्रैल, 1948 को जवाहर लाल नेहरु द्वारा ग्वालियर में संयुक्त राज्य मध्य भारत का औपचारिक उद्घाटन किया गया l सिंधिया एवं होल्कर को क्रमशः राजप्रमुख एवं उपराजप्रमुख की शपथ दिलाई गई l भिंड मध्य भारत के 06 जिलों में से एक था ।

ग्वालियर